इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में अमेरिकन देसी यानी भारतीय अमेरिकियों की रुचि सामान्य से ज्यादा है। एक तो भारतीय मूल की कमला हैरिस को डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडेन ने रनिंग मेट चुना है। फिर डोनाल्ड ट्रम्प और नरेंद्र मोदी की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है, लेकिन बात बस इतनी नहीं है।
चार साल पहले 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में ट्रम्प का फुटेज सामने आया था, यह कहते हुए कि अबकी बार ट्रम्प सरकार। जाहिर है, वे सीधे-सीधे भारतीय अमेरिकियों पर निशाना साध रहे थे। कहीं न कहीं, भारतीय-अमेरिकी उनकी जीत में निर्णायक रहे भी। तभी तो ट्रम्प के ‘फोर मोर ईयर्स’ कैम्पेन में मोदी की ह्यूस्टन रैली का फुटेज जोड़ा गया है। भारत के लिए तो ट्रम्प से पहले के राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पार्टी डेमोक्रेटिक भी करीब की रही है। तभी तो बाइडेन ने न केवल भारतीय मूल की कमला हैरिस को रनिंग मेट बनाया, बल्कि भारतीय अमेरिकियों के लिए अलग से चुनाव घोषणापत्र भी जारी किया।
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क्या महत्व रखते हैं अमेरिकी चुनावों में भारतीय-अमेरिकन?
- इतना समझ लीजिए कि नंबरों से इसका कोई संबंध नहीं है। कार्नेगी एनडाउमेंट रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में 19 लाख भारतीय मूल के वोटर हैं। यानी कुल वोटर्स का 0.82% हिस्सा। आप कहेंगे कि यह कैसे रिजल्ट प्रभावित कर सकते हैं? जवाब के लिए आपको अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया को समझना होगा। यहां सबसे ज्यादा वोट पाने वाला कैंडीडेट नहीं जीतता, बल्कि वह राष्ट्रपति बनता है, जिसके पास इलेक्टोरल कॉलेज के कम से कम 270 इलेक्टर का साथ होता है।
- अमेरिकी चुनावों में देसी अमेरिकियों का दूसरा महत्व है- उनकी कमाई। अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडियन ओरिजिन (AAPI) के मुताबिक, 2018 में भारतीय अमेरिकी वोटर्स की सालाना आय 1.39 लाख डॉलर थी। गोरे, हिस्पैनिक और अश्वेत वोटर्स की औसत सालाना आय 80 हजार डॉलर से कम थी। साफ है कि भारतीय समुदाय अमेरिका के प्रभावशाली तबके में आता है। लॉस एंजिलिस टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 प्रेसिडेंशियल कैम्पेन के लिए भारतीय-अमेरिकियों ने दोनों प्रमुख पार्टियों को 3 मिलियन डॉलर से अधिक का डोनेशन किया है। यह हॉलीवुड से मिले डोनेशन से भी ज्यादा है।
तो क्या सिर्फ कमाई की वजह से देसी अमेरिकियों का महत्व है?
- नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। दरअसल, अमेरिका में बैलटग्राउंड स्टेट्स या स्विंग स्टेट्स ही मोटे तौर पर ट्रम्प और बाइडेन की जीत-हार तय करेंगे। 2016 में भी इन्हीं स्टेट्स ने नतीजा तय किया था। विनर-टेक्स-ऑल सिस्टम की वजह से इन स्टेट्स में यदि किसी पार्टी को एक वोट भी ज्यादा मिला तो वहां के सभी इलेक्टर उसी पार्टी के होंगे।
- 2016 के चुनावों में रिपब्लिकन कैंडीडेट ट्रम्प की जीत और डेमोक्रेट हिलेरी क्लिंटन की हार तय हुई थी सिर्फ 77,744 वोट्स से। इस तरह दुनिया के सबसे ताकतवर व्यक्ति के चुनाव में कुछ चुनिंदा राज्यों के कुछ हजार वोटर निर्णायक हो गए। ट्रम्प ने 3 स्टेट्स- मिशिगन (10,704 वोट्स से), विसकॉन्सिन (22,748 वोट्स से) और पेनसिल्वेनिया (44,292 वोट्स से) में जीत हासिल की और उन्हें इसके बदले 46 इलेक्टर वोट्स मिले थे। यदि यह क्लिंटन को मिलते तो उनके पास 538 इलेक्टोरल कॉलेज वोट्स में 274 वोट्स होते और वह प्रेसिडेंट होतीं।
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बैटलग्राउंड या स्विंग स्टेट्स में भारतीय अमेरिकियों की क्या भूमिका है?
- अमेरिका में कुछ स्टेट्स रिपब्लिकन के प्रभुत्व वाले हैं और कुछ स्टेट्स डेमोक्रेट्स के। कुछ स्टेट्स ऐसे हैं, जिधर खड़े होते हैं, उसका ही पलड़ा भारी कर देते हैं। इन स्टेट्स को ही बैटलग्राउंड या स्विंग स्टेट्स कहते हैं। काफी हद तक इन स्टेट्स पर ही किसी कैंडीडेट की जीत-हार तय होती है। इनमें जीत-हार का अंतर भी काफी कम होता है।
- 6 स्टेट्स ऐसे हैं, जहां बराक ओबामा 2012 में जीते, लेकिन 2016 में ट्रम्प को उनका साथ मिला। इन 6 स्टेट्स में फ्लोरिडा (इलेक्टोरल वोट्स 29), पेनसिल्वेनिया (20), ओहियो (18), मिशिगन (16), विसकॉन्सिन (10), और आईओवा (6) शामिल हैं। इनमें फ्लोरिडा, पेनसिल्वेनिया, मिशिगन और विसकॉन्सिन में भारतीय अमेरिकी वोटर्स की प्रभावी संख्या है।
- YouGov और कैम्ब्रिज एन्डाउमेंट सर्वे के मुताबिक, 72% भारतीय अमेरिकी बाइडेन को वोट डालेंगे, जबकि 22% डोनाल्ड ट्रम्प को। यदि हम मानते हैं कि सब फैक्टर 2016 जैसे ही रहेंगे तो भारतीय अमेरिकियों का 72% सपोर्ट बाइडेन को प्रेसिडेंट बनाने में मददगार साबित होगा। मिशिगन में बाइडेन को 90 हजार, विसकॉन्सिन में 26,640 वोट्स और पेनसिल्वेनिया में 1,12,320 वोट्स भारतीयों के मिलेंगे। यानी डेमोक्रेट्स इनके दम पर 2016 की हार को 2020 में जीत में बदल सकते हैं।
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