विमल कुमार, वरिष्ठ खेल पत्रकार. यूं तो महेंद्र सिंह धोनी की उपलब्धियों से हर कोई वाकिफ है, लेकिन करीब डेढ़ दशक के करिअर में पर्दे के पीछे भी धोनी ने ऐसे काम किए, जिन्हें भारतीय क्रिकेट में उनकी विरासत के तौर पर देखा जाएगा।
धोनी स्वाभाविक लीडर थे। उन्हें लंबी मीटिंग पसंद नहीं थी। उन्हें लगता था कि इससे समय की बर्बादी होती है। साथ ही खिलाड़ी मैदान पर फैसले लेने के लिए अपनी नैसर्गिक प्रतिभा का इस्तेमाल नहीं करते हैं। टीम के लिए मीटिंग की जिम्मेदारी कोच डंकन फ्लेचर और गैरी कर्स्टन को थमा दी थी। वहीं, चेन्नई के लिए यह भूमिका स्टीफन फ्लेमिंग निभाने लगे।
ड्रेसिंग रूम से खबरें निकलना बंद
धोनी ने उस परंपरा को भारतीय क्रिकेट से खत्म कर दिया, जहां किसी भी मैच से पहले अंतिम ग्यारह खिलाड़ियों को लेकर सस्पेंस बना करता था। मीडिया अटकलें लगाया करता था। धोनी को अगले मैच में किस खिलाड़ी को ड्रॉप करना है और किसे खिलाना है, तब तक नहीं बताते थे, जबतक कि टीम इंडिया होटल से बस पर सवार होकर मैदान का रुख नहीं करती थी।
सीनियर-जूनियर कल्चर खत्म:
धोनी ने 2012 से ही कोहली को अगले कप्तान के तौर पर तैयार करना शुरू कर दिया। चाहे रोहित हो या धवन, सभी को बराबरी के तौर पर देखा। पंड्या को भी इजाजत थी कि वो ड्रेसिंग रूम में धोनी का मजाक उड़ा सकें।
चैंपियनों की फौज इकट्ठा की
मुख्य चयनकर्ता मोहिंदर अमरनाथ से धोनी टकराए क्योंकि ऑस्ट्रेलिया दौरे पर कोहली की खराब फॉर्म को देखने के बावजूद वो उन्हें ड्रॉप करने के लिए राजी नहीं हुए। 2012 में रोहित श्रीलंका में 5 मैचों में 20 रन भी नहीं बना पाए तो उनके कंधे पर हाथ रखकर कहा कि तू घबरा नहीं, अब मिडिल ऑर्डर की बजाए ओपन करेगा। चेन्नई में अश्विन को नेट्स पर अभ्यास करते देख हरभजन का विकल्प बना दिया। रवींद्र जडेजा और भुवनेश्वर कुमार को यह एहसास कराया कि वो किसी से कम नहीं।
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