2100 तक 6 गुना तेजी से पिघलेगी अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड की बर्फ, तटीय शहरों में रहने वाले 40 करोड़ लोगों पर खतरा

वॉशिंगटन. 50 देशों के अंतरराष्ट्रीय संगठनों के वैज्ञानिकों ने 11 सैटेलाइट की मदद से किए विश्लेषण में दावा किया कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड की बर्फ तेजी से पिघल रही है। पिछले 25 सालों (1992 से 2017) में 6.4 हजार करोड़ टन बर्फ पिघली। इससे 0.7 इंच (17 सेंटीमीटर) समुद्र तल में इजाफा हुआ। वर्तमान बर्फ पिघलने की दर पिछले 25 सालों के मुकाबले 6 गुना अधिक है।

द आइसशीट मास बैलेंस इंटरकम्प्रेरीशन एक्सरसाइज के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2100 तक इतनी बर्फ पिघल जाएगी, जिससे समुद्र तल में 6.6 इंच तक बढ़ोतरी हो सकती है। इससे द्वीपों, तटीय शहरों के 40 करोड़ लोग खतरे में होंगे।

जीव जगत पर तबाही का खतरा रहेगा
जलवायु परिवर्तन के चलते ग्रीनलैंड की 60% बर्फ पिघल जाएगी, जबकि अंटार्कटिका की 40%। इसके बाद हर 100 साल में समुद्र का लेवल बढ़ता ही जाएगा। इससे तटीय कटाव, बाढ़ जैसी आपदाएं आएंगी। समूचे जीव जगत पर तबाही का खतरा रहेगा। कैलिफोर्निया स्थित नासा की जेट प्रोपुलसन लैबोलेटरी के एरिक आईविन्स ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बर्फ के पिघलने और समुद्री तल बढ़ने का अध्ययन किया। उन्होंने बताया, कम्यूटर की मदद और सैटेलाइट से अध्ययन के आधार पर यह डाटा तैयार हुआ है। इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

2015 के पेरिस क्लाइमेट गोल में चेताया गया था कि 2300 तक समुद्री जलस्तर 4 फीट तक बढ़ जाएगा।

2300 तक 4 फीट बढ़ जाएगा जलस्तर
नेचर जरनल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘सभी समुद्रों का जलस्तर बढ़ेगा। बर्फ पिघलने के अनुमान से अधिक तेजी से घट रही है। जाहिर है इससे सभी सागरों के जलस्तर में बढ़ोतरी होगी।’’ 2015 के पेरिस क्लाइमेट गोल में वैज्ञानिकों ने चेताया था कि 2300 तक समुद्री जलस्तर 4 फीट तक बढ़ जाएगा। इससे संघाई से लेकर लंदन तक के शहरों और बंग्लादेश लेकर फ्लोरिडा, म्यांमार को खतरा हो सकता है।



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पिछले 25 सालों में 6.4 हजार करोड़ टन बर्फ पिघली।


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