जिन वोटरों ने किसे वोट देना है, इसका मन नहीं बनाया- वे इस चुनाव का नतीजा तय कर सकते हैं

74 साल के जॉन हॉलैंड खुद को सियासी तौर पर आजाद बताते हैं। मायने ये कि न तो वे रिपब्लिकन्स के समर्थक हैं और न डेमोक्रेट्स के। उम्मीदवार देखकर तय करते हैं कि वोट किसे देना है। वे उन वोटरों में शामिल हैं, जिन्होंने यह फैसला नहीं किया कि इस बार किसे वोट देना है। हॉलैंड कहते हैं- क्या आपको लगता है कि मैं अपने बच्चों के दादा के तौर पर डोनाल्ड ट्रम्प को पसंद करूंगा? नहीं। उन्होंने मास्क पहना और वोटिंग करने गए।

चार साल में काफी कुछ बदल गया
चार साल पहल तक हॉलैंड जैसे वोटर्स दोनों पार्टियों की नीतियां और कैंडिडेट देखने के बाद भी तय नहीं कर पाते थे कि वोट किसे देना है। लेकिन, आखिरी वक्त पर नीतियां ही देखते और वोट करते। इस साल बहुत कम वोटर्स ऐसे हैं जिन्होंने यह तय नहीं किया है कि वोट किसे देना है। लेकिन, इस साल कुछ अहम राज्यों के ऐसे काफी वोटर्स हैं जिन्होंने किसे वोट देना है, इसका मन नहीं बनाया। और ध्यान रखिए ये ये निर्णायक साबित हो सकते हैं।

ट्रम्प से नाराजी
पिछले चुनाव में कुछ वोटर्स ऐसे थे जो दोनों पार्टियों को लेकर निगेटिव थे। कुछ मानते थे कि ट्रम्प खराब हो सकते हैं, लेकिन डेमोक्रेट्स से फिर भी बेहतर हैं। इस बार ऐसा नहीं है। इन वोटरों में लैटिनो और एशियन-अमेरिकन्स ज्यादा हैं। इनमें भी युवाओं की संख्या ज्यादा है। इन लोगों का रुझान ट्रम्प की तरफ ज्यादा नहीं है। न ये ट्रम्प को तवज्जो दे रहे हैं और बाइडेन को। एनवायटी और सिएना पोल्स के नतीजे बताते हैं कि फैसला न करने वाले वोटरों का रुझान ट्रम्प की बजाए बाइडेन की तरफ ज्यादा हो सकता है। आसान शब्दों में कहें तो इस लिहाज से बाइडेन का पलड़ा भारी है।

पाला बदल सकते हैं ये वोटर्स
जिन वोटरों ने किसे वोट देना है, यह तय नहीं किया- उनमें से पचास फीसदी ऐसे हैं जो बता तो नहीं रहे हैं लेकिन, पाला बदल सकते हैं। हो सकता है इन वोटरों की तादाद कम हो। लेकिन, जॉर्जिया, नॉर्थ कैरोलिना जैसे राज्यों में यह एक या दो प्रतिशत से भी फर्क पैदा कर सकते हैं। पोलिंग डायरेक्टर पैट्रिक मुरे कहते हैं- अनिर्णय (जिन्होंने वोट का फैसला नहीं किया) के शिकार यही वोटर निर्णायक साबित हो सकते हैं। ये थर्ड पार्टी को भी सपोर्ट कर सकते हैं। 13 फीसदी ऐसे हैं जो दबाव या प्रभाव में आने के बाद दोनों कैंडिडेट्स में से किसी को भी वोट दे सकते हैं।

पिछले चुनाव में भी यही हुआ था
2016 में अनिर्णय के शिकार करीब 20 फीसदी वोटर थे। इस बार कम से कम आधे तो इस कैटेगरी में होंगे। पोल्स से संकेत मिलते हैं कि इनमें से ज्यादातर ट्रम्प को पसंद नहीं करते। प्रोफेसर मुरे कहते हैं कि ऐसे वोटर्स जो ट्रम्प को पसंद नहीं करते, उन्हें अपने पाले में करने के लिए बाइडेन को मेहनत करनी होगी। कुछ वोटर्स ऐसे भी हैं जो किसी पार्टी की विचारधारा से जुड़े नहीं होते। ये किसी भी पाले में जा सकते हैं।

बाइडेन को मेहनत करनी होगी
कुल मिलाकर देखें तो अनिर्णय का शिकार वोटर्स अहम हैं। अब बाइडेन के लिए ये जरूरी हो जाता है कि वे इन वोटर्स तक पहुंच बनाएं और उन्हें अपने पाले में करें। अच्छी बात ये है कि डेमोक्रेटिक पार्टी के कार्यकर्ता ट्रम्प विरोधी और अनिर्णय के शिकार वोटर्स तक पहुंच बना रहे हैं। एक पोल के मुताबिक- मिशिगन, पेन्सिलवेनिया और फ्लोरिडा में इस तरह के वोटर्स काफी हैं। ये आखिरी वक्त पर किसी भी तरफ जा सकते हैं। स्विंग स्टेट्स में बाइडेन को इन पर नजर बनानी होगी।

रिपब्लिकन्स की रणनीति में खामी
रिपब्लिकन्स की नजर उन वोटर्स पर है जो ग्रेजुएट हैं, लेकिन उनके पास रोजगार नहीं है। वे बिना डिग्री वाले व्हाइट वोटर्स पर भी फोकस कर रहे हैं। पेन्सिलवेनिया में मतदान का प्रतिशत इन्हीं लोगों ने बढ़ाया। अनुमान है कि इससे ट्रम्प को फायदा हो सकता है। कुछ वोटर्स ऐसे हैं जो महामारी और सियासत में कोई संबंध नहीं देखते। पॉलिटिकल एक्सपर्ट कैमरून कहते हैं- कई वोटर्स ऐसे हैं जो ये जानते और मानते हैं कि हेल्थ का सियासत से कोई रिश्ता नहीं। इसलिए उनके वोट्स में भी ये दिखेगा। हमें तो उस कैंडिडेट को चुनना है जो दोनों में बेहतर हो। जो इस देश को 100 फीसदी दे सके और जो इस देश को बेहतर बना सके।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3ecWb6p

Post a Comment

0 Comments

Featured post

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai: अक्षरा-अभिमन्यु की शादी के बाद बढ़ीं मुश्किलें, शो में आया बड़ा ट्विस्ट