धूप में कार का कलर फीका पड़ जाने का है टेंशन! तो लगवा सकते हैं पेंट प्रोटेक्शन फिल्म (PPF); कलर को सालों साल सुरक्षित रखेगी, स्क्रैच पड़ने पर खुद ठीक भी करेगी

हर व्यक्ति को अपनी गाड़ी से खास लगाव होता है, कोई भी अपनी गाड़ी पर एक भी स्क्रैच नहीं देखना चाहता। लेकिन कुछ शरारती तत्व जानबूझकर गाड़ी पर अपनी कलाकारी दिखा जाते हैं, कोई चाबी तो कोई नुकीली चीज से स्क्रैच लगा जाता है तो कई बार रश ड्राइविंग करने वाले बाइकर्स गाड़ी में स्क्रैच मार कर निकल जाते हैं। ऐसे में अगर आप अपनी गाड़ी के कलर को चिंतित हैं और सालों साल नए जैसा रखना चाहते हैं ताकि उसके खूबसूरती बरकरार रहे तो उसपर पीपीएफ यानी पेंट प्रोटेक्शन फिल्म लगवा सकते हैं। इसके फायदे और नुकसान जानने के लिए हमने एक्सपर्ट राहुल श्योरान से बात की, जिन्होंने हमारे साथ पीपीएफ कोटिंग के बारे अहम जानकारियां साझा कीं...

क्या होती है PPF, क्यों लगवानी चाहिए?

  • पीपीएफ का मतलब पेंट प्रोटेक्शन फिल्म है। एक्सपर्ट ने बताया कि जिन लोगों को अपनी कार से प्यार है या जिन्हें धूप में कार का कलर फेड हो जाने की चिंता है, तो उनके लिए पीपीएफ सबसे बेस्ट उपाय है। इसकी थिकनेस सिरेमिक कोटिंग से कहीं ज्यादा होती है।
  • ब्रांड-टू-ब्रांड इसकी थिकनेस 180 माइक्रॉन से 300 माइक्रॉन तक होती है जबकि सिरेमिक की थिकनेस इसकी एक-तिहाई होती है। साथ ही सिरेमिक कोटिंग लिक्विड होती है, ऐसे में बार-बार कार वॉश करने से निकल सकती है जबकि पीपीएफ प्लास्टिक लेयर है तो इसे कार वॉशिंग से कोई फर्क नहीं पड़ता। इसे लगवाने से गाड़ी में स्क्रैच लगने की टेंशन ही खत्म हो जाती है साथ ही सालों साल कार के कलर की चमक भी बरकरार रहती है।

इसे नई गाड़ी में ही कराए या पुरानी में भी करा सकते हैं?

  • जरूरी नहीं कि नई गाड़ी है तो उसके कलर को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। भारत में तापमान दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। ऐसे में चाहे गाड़ी नई हो या पुरानी, कलर फेड होने का खतरा हमेशा बना रहता है, खासतौर से उन्हें जिनकी गाड़ी का कलर डार्क है। वहीं कुछ ब्रांड्स की गाड़ियों में अच्छी क्वालिटी का कलर नहीं देते, जो कुछ समय बाद फीके पड़ने लगते हैं।
  • पीपीएफ हर एक गाड़ी मालिक को करवाना चाहिए, जो अपनी को प्यार करते हैं, उसे इन्वेस्टमेंट समझते हैं, क्योंकि 10-12 लाख खर्च करने के बाद सभी चाहते है कि उनकी गाड़ी सुरक्षित रहे। देखा जाए तो पीपीएफ लगवाने का खर्च प्रति पैनल उतना है पड़ता है, जितना प्रति पैनल पेंट करवाना पर पड़ता है। उदाहरण के तौर पर, कार के दरवाजे पर स्क्रैच पड़ने पर अगर आप शोरूम से री-पेंट करवाते हैं तो उतना ही खर्च आएगा, जितना उसके पीपीएफ लगवाने में आता है। लेकिन पीपीएफ लगवाने के बाद बार-बार पेंट करवाने का झंझट खत्म हो जाता है। अगर उसके बाद कोई स्क्रैच पड़ता भी है तो पीपीएफ उस झेल जाएगा और ओरिजनल पेंट को सेफ रखेगा। खास बात यह है कि डार्क कलर पर पीपीएफ लगवाई जाएं तो यह उसकी शाइनिंग दो से तीन गुना तक बढ़ा देती है।

कैसे लगाई जाती है पीपीएफ, कितना समय लगता है?

पीपीएफ लगवाने में लगभग 2 से 3 दिन का समय लगता है। क्योंकि गाड़ी के डोर-हैंडल्स, साइड मिरर्स, क्लेडिंग, बैज जैसी चीजों को पहले निकाला जाता है। कई गाड़ियों में हेडलाइट-टेललाइट्स पर भी पीपीएफ किया जाता है लेकिन कई गाड़ियों की हेडलाइट्स-टेललाइट्स काफी जिग-जैग होती है, ऐसे में उन पर फिल्म नहीं लग पाती। वैसे डोर हैंडल्स पर कभी भी पीपीएफ नहीं लगाया जाता। कुछ लोग जल्दी के चक्कर में गाड़ी के पार्ट्स खोलने से कतराते हैं, ऐसे में प्रॉपर फिनिशिंग नहीं आ पाती।

यह है पीपीएस की पूरी प्रोसेस...

1. डीप क्लीनिंग (Deep Cleaning)

किसी भी गाड़ी पर पीपीएफ करने से पहले उसे अच्छी तरह से कम से कम एक से दो बार वॉश किया जाता है। सुनिश्चित किया जाता है कि गाड़ी पर किसी भी तरह की गंदगी न हो। खास तौर से कोने पर जहां गंदगी लगने की सबसे ज्यादा संभावना होती है।

2. क्लेइंग (Claying)

वॉश करने के बाद कार क्लेइंग प्रोसेस से गुजरती है। इस प्रक्रिया में खास तरह कि चिकनी मिट्टी को लुब्रिकेंट के जरिए कार की बॉडी पर रगड़ा जाता है, जिससे बारीक से बारीक गंदगी निक जाए, इससे सरफेस और ज्यादा साफ हो जाता है। इसे क्ले ग्लव्स पहन कर किया जाता है।

3. कम्पाउंडिंग (Compunding)

वॉशिंग और क्लेइंग के बाद सरफेस की कंपाउंडिंग होती है। इसके सरफेस पर पड़े स्वेलमार्क्स और हेयर लाइन स्क्रैच हटाए जाते हैं। स्वेलमार्क खासतौर से गाड़ी को कपड़े से साफ करने के दौरान पड़ते हैं, जो राउंड शेप में होते हैं, ये ज्यादातर ब्लैक और रेड कलर की गाड़ियों में ज्यादा दिखाई देते हैं। इन्हें क्लियर करने के लिए कंपाउंडिंग की जाती है। स्क्रैच के हिसाब से अलग अलग ग्रेड के कंपाउंड यूज किए जाते हैं। कम्पाउंडिंग डुअल एक्शन पॉलिशर से की जाती है, इसकी मोटर 4-वे यानी अप-डाउन और लेफ्ट-राइट तरीके से काम करती है।

4. आईपीए (IPA)

अंत में सरफेस को पूरी तरह से साफ करने के लिए आईपीए किया जाता है। इसके लिए आइसोप्रोपाइल अल्कोहल यूज किया जाता है, जो कम्पाउंडिंग के दौरान सतह पर छूटी पॉलिश को पूरी तरह से साफ करता है, ताकि पीपीएफ अच्छी तरह से सरफेस पर चिपके।

5. पीपीएफ प्रोसेस शुरू

आईपीए के बाद पीपीएफ प्रोसेस शुरू हो जाती है। पीपीएस गाड़ी पर लगने से पहले पूरे पीपीएफ पर एक सोपी (Soapy) सॉल्यूशन का छिड़काव किया जाता है और वहीं सॉल्यूशन गाड़ी की बॉडी पर भी स्प्रे किया जाता है। इसके बाद पीपीएफ को सरफेस पर लगाकर, स्क्वीजी (squeeze) की मदद से पानी बाहर निकाला जाता है। यह पूरी प्रोसेस कांच पर फिल्म चढ़ाने जैसी होती है। यह पूरी प्रक्रिया बंद कमरे में की जाती है, जहां डस्ट लगने की संभावना न के बराबर होती है। जिस जगह पर पीपीएफ नहीं हो पाती, उस जगह ग्राहकों को सिरेमिक कोटिंग करना की सलाह दी जाती है, ताकि प्रोटेक्शन मिल सके। इसे पूरी प्रोसेस में तीन दिन तक का समय लगता है जो गाड़ी के साइज पर निर्भर करता है, क्योंकि पीपीएफ लगने के बाद उसे सूखने के लिए भी पर्याप्त समय देना होता है खासतौर से सर्दियों के मौसम में।

पीपीएफ कराने में कितना खर्च आता है?

  • बाजार में पीपीएफ (पेंट प्रोटेक्शन फिल्म) दो तरह की आती है। पहली ग्लोस, जिसमें सेल्फ हीलिंग और नॉन सेल्फ हीलिंग का ऑप्शन मिलता है। दूसरी मैट, इसमें भी सेल्फ हीलिंग और नॉन सेल्फ हीलिंग का ऑप्शन मिलता है। मैट उन लोगों के लिए बढ़िया है, जो अपनी कार का कलर चेंज कर उसे नया लुक देना चाहते हैं।
  • फिलहाल पीपीएफ की मैन्युफैक्चरिंग भारत में नहीं हो रही है, इसलिए इन्हें अलग-अलग देशों से एक्सपोर्ट कराया जाता है। पीपीएफ की कीमत ब्रांड के हिसाब से अलग अलग है। ब्रांड पीपीएफ के साथ बाकायदा आपको बिल, लोट नंबर और वारंटी कार्ड तक मिलता है।
  • ब्रांडेड सेल्फ हीलिंग पीपीएफ की बात की जाए तो इसकी लागत (क्रेटा साइज कार के लिए) 65 हजार से 1.35 लाख तक होती है, जो कार के साइज और पीपीएफ के ब्रांड पर निर्भर करती है। नॉन सेल्फ हीलिंग पीपीएफ की लागत 35 हजार से 50 हजार रुपए तक जाती है। हालांकि, बाजार में कई चीनी ब्रांड भी उपलब्ध है, जिन पर कोई वारंटी नहीं मिलती है।
  • नोट- नॉन-ब्रांडेड पीपीएफ पर कुछ समय बाद पीला पड़ने लगते हैं, यह पीलापन खासतौर से व्हाइट कारों पर जल्दी नजर आने लगता है। ऐसे में हमेशा ब्रांडेड पीपीएफ लगवाएं और दुकानदार से बिल, लोट नंबर और वारंटी कार्ड जरूर मांगे, ताकि किसी भी परेशानी से बचा जा सके। ब्रांडेड पीपीएफ में किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं आती। ग्राहक अपनी जरूरत के हिसाब से अलग अलग पार्ट पर भी पीपीएफ लगवा सकता है।

नोट- सभी पॉइंट राहुल श्योरान (WRAPAHOLOX, द्वारका, नई दिल्ली) से बातचीत के आधार पर।

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बाजार में चीनी ब्रांड्स की पीपीएफ भी उपलब्ध है, जिन पर कोई वारंटी नहीं मिलती है, कोशिश करें कि ब्रांडेड पीपीएफ ही लगवाएं, जिसके साथ बिल और वारंटी कार्ड जरूर मिले।


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