दक्षिण चीन सागर में छोटे देशों को धमकाने वाला चीन अमेरिका के तीखे तेवरों से बैकफुट पर आ गया। शी जिनपिंग सरकार ने सेना को एक आदेश जारी किया है। इसमें कहा गया है कि चीनी नेवी साउथ चाइना सी में ऐसा कोई कदम न उठाए जिससे इस क्षेत्र में तनाव बढ़े। इतना ही नहीं, चीनी सेना को आदेश दिया गया है कि वो किसी भी हाल में पहली गोली अपनी तरफ से न चलाए।
चीन इस क्षेत्र के छोटे देशों जैसे फिलिपींस और ताइवान को धमकाने के साथ ही कुछ नए द्वीपों पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा था। अमेरिका ने इन देशों से मदद का वादा किया। पिछले महीने अपने दो वॉरशिप दक्षिण चीन सागर में तैनात कर दिए। इसके बाद चीन के तेवर ढीले पड़ गए।
टकराव से बचने की हर मुमिकन कोशिश करो
‘द डिप्लोमैट’ वेबसाइट चीन और अमेरिका के बीच तनाव पर एक रिपोर्ट पब्लिश की है। इसमें चीन के एक अफसर के हवाले से कहा गया- दक्षिण चीन सागर में तैनात चीन की नेवी को सरकार ने साफ आदेश दिए हैं कि किसी भी अमेरिकी जहाज या प्लेन पर किसी भी हालत में अपनी तरफ से पहला फायर नहीं किया जाए। जहां तक हो सके हालात को काबू में रखा जाए और तनाव कम करने की कोशिश की जाए।
ट्रम्प का सख्त रुख काम आया
पूरे दक्षिण चीन सागर पर कब्जे की साजिश रचते चीन को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कुछ महीनों से लगातार वॉर्निंग दे रहे थे। पिछले महीने अमेरिकी नेवी ने अपने दो सबसे ताकतवर और आधुनिक वॉरशिप यूएसएस रोनाल्ड रीगन और यूएसएस निमित्ज को इस क्षेत्र में तैनात किया। इन वॉरशिप्स पर मौजूद फाइटर जेट्स ने शंघाई से 75 किलोमीटर दूर तक उड़ान भरी। चीनी सेना के हर मूवमेंट को रिकॉर्ड किया गया। ट्रम्प ने कहा था- चीन महामारी का फायदा उठा रहा है। हम ऐसा नहीं होने देंगे।
दोनों रक्षा मंत्रियों की बातचीत भी हुई
रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले हफ्ते चीन के डिफेंस मिनिस्टर ने अमेरिकी डिफेंस मिनिस्टर से बातचीत की थी। इस दौरान अमेरिकी रक्षा मंत्री मार्क एस्पर ने चीन के डिफेंस मिनिस्टर से साफ कह दिया था कि तनाव कम करने या रोकने की जिम्मेदारी चीन की है। एस्पर ने कहा था- अमेरिका किसी भी आक्रामक रवैये को सहन नहीं करेगा, इसका जवाब दिया जाएगा।
1998 में हुआ था समझौता
1998 में चीन और अमेरिका ने एक समझौता किया था। इसके तहत सैन्य तनाव बढ़ने पर उसे कम करने के लिए बातचीत का मैकेनिज्म तैयार किया गया था। शीत युद्ध के दौर में अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच भी ऐसा ही करार हुआ था। हालांकि, अमेरिका और चीन के बीच गंभीर सैन्य तनाव कभी नहीं हुआ, लिहाजा इस समझौते की भी जरूरत नहीं पड़ी।
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