पूरे देश में सिर्फ 600 की आबादी बची है, पर लोग हिंदुस्तान नहीं आना चाहते, कहते हैं- यहां बम और भारत में गरीबी मार देगी

मुजीब मशाल/फहीम आबिद. अफगानिस्तान में हिंसा का शिकार हो रहे हिंदू और सिखों की मदद के लिए भारत सरकार कवायद तेज कर रही है। सरकार ने कहा है कि अफगान युद्ध के दौरान वहां हमलों का शिकार हुए हिंदु और सिख समुदाय के वीजा और लॉन्ग टर्म रेसिडेंसी के लिए प्रयास कर रहे हैं। कई लोगों ने इस फैसले पर खुशी जताई है, लेकिन उनका कहना है कि भारत में वापसी का मतलब है गरीबी में रहना।

वापसी पर अफगान हिंदू-सिख लॉन्ग टर्म रेसिडेंसी के लिए आवेदन कर सकते हैं
शनिवार को भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि "भारत ने हमलों का शिकार हो रहे अफगान हिंदु और सिख समुदाय की भारत वापसी को सुविधाजनक बनाने का फैसला लिया है।" काबुल में भारतीय अधिकारी ने कहा कि इस फैसले का मतलब है अफगानिस्तान के हिंदू-सिखों को भारत में वीजा के लिए प्राथमिकता और लॉन्ग टर्म रेसिडेंसी के लिए आवेदन करने की सुविधा मिलेगी।

यहां हमले में मर सकते हैं, लेकिन भारत में गरीबी से मर जाएंगे
अफगानिस्तान में रह रहे हिंदू-सिखों के वहां पर कई पीढ़ियों से दुकानें और व्यापार हैं। वे अपने दिन अगले हमले की आशंका में बिता रहे हैं। लोगों का कहना है कि भारत में नई शुरुआत करने का मतलब गरीबी में रहना होगा। खासतौर से महामारी के दौरान जब आर्थिक हालात खराब हैं।

काबुल में गुरुद्वारा के पास रहने वाले 63 साल के लाला शेर सिंह कहते हैं कि "समुदाय इतना छोटा हो गया है कि अब यह डर बना रहता है कि अगले हमले में मरने वालों का क्रियाकर्म करने के लिए भी पर्याप्त लोग नहीं बचेंगे। हो सकता है कि हिंदू-सिखों को मिल रही धमकियों से मर जाऊं, लेकिन भारत में मैं गरीबी से मर जाऊंगा।" उन्होंने कहा "मैंने अपना सारा जीवन अफगानिस्तान में गुजारा है। अगर पैसे नहीं होने पर मैं किसी दुकान के सामने खड़ा होकर दो अंडे और ब्रेड मांगूंगा तो वो मुझे मुफ्त में दे देंगे, लेकिन भारत में मेरी मदद कौन करेगा।"

पूर्वी जलालाबाद में गुरुद्वारे पर हुए में मारे गए लोगों की याद में 2018 में कार्यक्रम आयोजित हुआ था।

भारत के प्रस्ताव पर अफगान सरकार ने नहीं दी प्रतिक्रिया
अभी तक अफगान सरकार ने भारत की पेशकश पर कोई भी जवाब नहीं दिया है। एक वरिष्ठ अफगान अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि हिंसा ने सभी अफगानों को प्रभावित किया है और हिंदू-सिखों की सुरक्षा की पेशकश ने अफगानिस्तान में धार्मिक विविधता को संदेह में ला दिया है। अधिकारी ने कहा कि यह चाल भारत के घरेलू दर्शकों को ध्यान में रखकर चली गई है। जहां भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को हिंदू पहचान दिलाने के लिए सेक्युलर से दूर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं।

अफगानिस्तान में हालात बेहद खराब हो गए हैं
अफगान में धार्मिक अल्पसंख्यक पहले से ज्यादा अनिश्चित हो गए हैं, क्योंकि अमेरिका ने 18 साल बाद अपने सैनिकों को वापस बुला लिया है। इसके अलावा 1990 में शासन करने वाली तालिबान सरकार के साथ ताकत साझा करने को लेकर बातचीत के लिए तैयार है। युद्ध के मैदान में भी पहले से ज्यादा उथल-पुथल हो गई है। यहां इस्लामिक स्टेट जैसे चरमपंथी समूह शामिल हो गए हैं, जो अल्पसंख्यकों को टार्गेट करते हैं।

सरकार के जरूरी पदों पर रहने वाले हिंदू-सिख देश छोड़कर जा चुके हैं
अफगानिस्तान में हिंदू-सिख समुदाय कभी हजारों में हुआ करता था। यहां ये लोग बड़े व्यापार और सरकार में उच्च पद संभालते थे, लेकिन इनमें से लगभग सभी दशकों से चले आ रहे युद्ध और अत्याचार के बाद भारत, यूरोप और उत्तर अमेरिका चले गए हैं।

नंगरहार के पूर्वी प्रांत में हजारों में से केवल 45 परिवार बचे हैं। जबकि पक्टिया में केवल एक जगमोहन सिंह का ही परिवार बचा है। वे हर्बल डॉक्टर हैं और अपनी पत्नी, दो बच्चों के साथ रहते हैं। उनके दो और बच्चे पहले ही काबुल के लिए भाग चुके हैं। डॉक्टर सिंह बताते हैं कि "कुछ दशक पहले पक्टिया के दूसरे जिले और इलाकों में करीब 3 हजार हिंदू और सिख परिवार थे। मेरे परिवार को छोड़कर सभी चले गए।"

पूरे देश में बचे हैं केवल 600 हिंदू-सिख
अब जब इनकी संख्या में कमी आई है तो हिंदू-सिख अक्सर एक साथ बड़े कंपाउंड में साथ रहते हैं और पूजा की जगह भी शेयर करते हैं। अब पूरे अफगानिस्तान में केवल 600 हिंदू-सिख रहते हैं। दो साल में हुए दो बड़े हमलों में करीब 50 लोगों की मौत के बाद से परिवार डरे हुए हैं। हालिया घटना मार्च में हुई थी, जब इस्लामिक स्टेट ने 6 घंटों तक गुरुद्वारा और काबुल स्थित हाउसिंग कॉम्पलेक्स को सीज कर दिया था। इसमें छोटे बच्चों समेत 25 लोगों की मौत हो गई थी।

हमले के बाद समुदाय के नेताओं ने चेतावनी दी, जिसके बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार समेत अफगान अधिकारियों ने सुरक्षा उपाय करने का वादा किया, लेकिन समुदाय के प्रतिनिधि नरेंद्र सिंह खालसा ने अफगान संसद में कहा कि मंदिर बंद है और सुधरा नहीं है। इलाके में कुछ अतिरिक्त पुलिस अधिकारियों के अलावा उन्हें ऐसी कोई भी मदद नहीं मिली है जो उनकी चिंताओं को दूर करे।

मंदिर के बाहर दुकान चलाने वाले 22 साल के वर्जेत सिंह कहते हैं "उन्होंने कुछ चेक पॉइंट्स बना दिए हैं, जहां कुछ अधिकारी मौजूद रहते हैं।" यहीं मंदिर के बाहर सिंह की मां और भाई की हत्या हो गई थी। उन्होंने कहा "अधिकारी जानते हैं कि वे मंदिर के बाहर खड़े एक पुलिस अधिकारी के साथ किसी हमले को नहीं रोक सकते हैं।"

मार्च में हमले का शिकार हुए गुरुद्वारे के अंदर की तस्वीर।

हालात बदले नहीं हैं, जान पर खतरा बना हुआ है
वर्जेत ने बताया "हमारी स्थिति में कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है। मैं अभी भी अपनी जान दांव पर लगाकर रोज सुबह काम के लिए निकलता हूं। मैं अभी भी अपने कंपाउंड पर अगले हमले को लेकर चिंतित हूं।" सरकार से आर्थिक मदद लेने वाले सिंह कहते हैं कि जब से हमले में उनका परिवार चला गया और पूजा करने की जगह छिन गई है, तब से जीवन असहनीय हो गया है। उनकी गर्भवती पत्नी अस्पताल जाने को लेकर डरी हुई है, क्योंकि हाल ही में मैटरनिटी वॉर्ड पर हमला हुआ था, जहां मां और बच्चों को मार दिया गया था।

उन्होंने कहा "भारत जब लॉन्ग टर्म वीजा दे देगा तो मैं वहां जाऊंगा और तब तक वहीं रहूंगा, जब तक मेरे देश में सुरक्षा के हालात सुधर नहीं जाते। कोई भी मेरा देश मुझसे नहीं ले सकता, लेकिन यह मेरे लिए जिंदा रहना जरूरी है, ताकि मैं यहां सब ठीक होने पर वापस आ सकूं।"

एक्टिविस्ट रवैल सिंह की कहानी
रवैल सिंह के रिश्तेदार को दिल्ली आए एक साल से ज्यादा वक्त हो गया है, लेकिन यहां जीवन आसान नहीं है। सिंह 2018 में जलालाबाद में हुए धमाकों में मारे गए 14 सिखों में से एक थे। वे एक्टिविस्ट थे। वे राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ मुलाकात की कोशिश कर रहे थे।

सिंह की पत्नी प्रीति ने कहा कि वो पति की मौत के तीन महीने बाद तीन बच्चों के साथ भारत आ गईं। यहां उनके 16 साल के बेटे प्रिंस को एक टेलर की दुकान पर एप्रेंटिस के तौर पर काम मिला। इसके साथ ही अफगानिस्तान या दूसरी जगहों से दोस्तों के जरिए मिलने वाली आर्थिक मदद के कारण उनका परिवार दो कमरों में रह सका, जिसका किराया करीब 2 हजार रुपए था।

महामारी ने छीनी बेटे की नौकरी
महामारी के कारण बेटे प्रिंस की नौकरी चली गई। टेलर ने कहा कि वो अब एप्रेंटिस को पैसे नहीं दे पाएगा। प्रीति ने कहा कि उनके परिवार ने दो कमरों में बंद होकर और मदद के इंतजार में अपने दिन गुजारे।

(फारुख जान मंगल/जबिउल्लाह गाजी/फातिमा फैजी ने रिपोर्टिंग में योगदान दिया है।)



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
अफगानिस्तान के काबुल स्थित गुरुद्वारे की 2018 की तस्वीर, जब यहां पर जलालाबाद हमले का शिकार हुए दो पीड़ितों के शरीर को लाया गया था।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2OOEApn

Post a Comment

0 Comments

Featured post

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai: अक्षरा-अभिमन्यु की शादी के बाद बढ़ीं मुश्किलें, शो में आया बड़ा ट्विस्ट